Tuesday, August 2, 2011

यादों का सैलाब

छुपाये नहीं छुपता था तेरा नूर हिजाब से.
जैसे छीन लाया हो लाली तेरा चेहरा किसी गुलाब से.
भूलना तो बोहत चाहा तुझको ऐ बेवफा.
मगर उमड़ आते थे हर लम्हा तेरे ख्याल बेहिसाब से.
बन गए शायर हम भी कुछ इस गुमान में
कि फाड़ देंगे तेरे नाम के पन्ने ज़िन्दगी की किताब से.
अब दिन के पहर  गुज़रते हैं तेरी यादों के बगैर,
पर क्या करें, तेरी स्याही न मिटा सके रातो के ख्वाब से.